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Tuesday, January 06, 2015

Koi paar nadi ke gata


bhang nishaa ki neeravta kar
(Breaking the silence of the night)
is dehaati gaane ka swar
(this rural/folk song's notes)
kakdi ke kheto se uthkar, aata jamuna par leharaata
(rising from cucumber's field, wish it came in waves on the river Jamuna)
koi paar nadi ke gaata
(wish someone sang across the river)

honge bhai bandhu nikat hi
(there could be relatives/friends nearby)
kabhi sochte honge ye bhi
(who may also be thinking sometimes)
is tat par bhi koi, uski tano se sukh pata
(somebody on this river bank may also seek solace / happiness from his song/raaga )
koi paar nadi ke gaata
(wish someone sang across the river)

aaj na jaane kyun hota mann
(Don't know why today this mind )
sun kar ye ekaaki gaayan
(after listening to the lonesome song)
sadaa ise main sunta rehta, sadaa ise ye gaata jaata
(always wants to listen to it, always wants to sing it)
koi paar nadi ke gaata
(wish someone sang across the river)

- Harivansh Rai Bachchan

Wednesday, October 29, 2014

Ishq mastana

Rituals of lal dhaga by A. Ramachandran 
Haman hai ishq mastana,
Haman ko hoshiyari kya?
Rahe azad ya jag mein,
Haman duniya se yaari kya?

Jo bichude hain piyare se,
Bhatakte dar badar phirte,
Hamara yaar hai humme,
Haman ko intazaari kya?

Na pal bichude piya hum se,
Na hum bichude piyare se
Unhi se neh laga hai,
Haman ko bekarari kya?

Kabira ishq ka mata,
Dui ko dur kar dil se.
Jo chalna rah nazuk hai,
Haman sar bojh bhari kya?

- Kabir 

Thursday, August 01, 2013

तमाम उम्र


सफ़र by Neha

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा ।
सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा ।

वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में,
हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा ।

तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में,
वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर में रहा ।

वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की,
मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा ।

हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में,
उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा ।

-गोपालदास "नीरज"

क्या है यह तूफ़ान




Sunday, December 11, 2011

Ab ke saawan mein

"Wheat Field in Rain" by Vincent Van Gogh

Ab ke saawan mein shararat ye mere saath hui,
Mera ghar chhod ke kul shahar mein barsaat hui.

Aap mat puchiye kya hum pe safar mein gujri,
The luteron ka jahan gaon, wahin raat hui.

Zindagi bhar to hui guftgu gairon se magar,
Aaj tak humse hamari naa mulakat hui.

Har galat mod pe toka hai kisi ne mujhko,
Ek aawaz teri jab se mere sath hui.

Maine socha ki mere desh ki halat kya hai,
Ek kaatil se tabhi meri mulakat hui.

- Gopaldas Neeraj

खुशबू सी आ रही है

Parinda by Neha

खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की,
खिडकी खुली है फिर कोई उनके मकान की.

हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो,
आ जायेगी जमीन पे छत आसमान की.

बुझ जाये सरेशाम ही जैसे कोई चिराग,
कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान की.

ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी,
हालत यही है आजकल हिन्दुस्तान की.

औरों के घर की धूप उसे क्यूं पसंद हो,
बेची हो जिसने रोशनी अपने मकान की .

जुल्फों के पेंचो-ख़म में उसे मत तलाशिये,
ये शायरी जुबां है किसी बेजुबान की.

'नीरज' से बढ़कर और धनी है कौन,
उसके हृदय में पीर है सारे जहान की.

- गोपालदास "नीरज"

Thursday, October 13, 2011

Pehla Kavi

Viyogi hoga pehla kavi,
Aah se upja hoga gaan,
Nikal kar nayanon se chupchap,
Bahi hogi kavita anjaan.

- Sumitra Nandan Pant

Dono or prem palta hai,
Priye, patang to jalta hi hai
Dipak bhee jalta hai.

 -Maithli Sharan Gupt

Kewal badal nahin aankh ko,
Thodi si dopahar bhi lena
Jeetey jeete marte hain sab,
Tum marte marte jee lena

Jab thakan sindhu ho jai,
Aur chetna lagey doobne
Baith hridaya ke madiralai mein,
Tab -Tab dard sura pi lena.

-RamSanehi Lal Sharma 'Yayawar'

 Courtesy: Manish Chauhan

Tuesday, April 13, 2010

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।

"The flight" by Neha


मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।
जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥

- सूरदास

Friday, February 26, 2010

चाँद और कवि


रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे-
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

- Ramdhari Singh 'Dinkar'

Saturday, February 13, 2010

इस पार, उस पार

Frontier by Neha

1

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

2

जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बूंदें पाती है, जीवन की झिलमिलसी झाँकी नयनों के आगे आती है, स्वरतालमयी वीणा बजती, मिलती है बस झंकार मुझे, मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है; ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जाएँगे; तब मानव की चेतनता का आधार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

3

प्याला है पर पी पाएँगे, है ज्ञात नहीं इतना हमको, इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थबना कितना हमको, कहने वाले, पर कहते है, हम कर्मों में स्वाधीन सदा, करने वालों की परवशता है ज्ञात किसे, जितनी हमको? कह तो सकते हैं, कहकर ही कुछ दिल हलका कर लेते हैं, उस पार अभागे मानव का अधिकार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

4

कुछ भी न किया था जब उसका, उसने पथ में काँटे बोये, वे भार दिए धर कंधों पर, जो रो-रोकर हमने ढोए; महलों के सपनों के भीतर जर्जर खँडहर का सत्य भरा, उर में ऐसी हलचल भर दी, दो रात न हम सुख से सोए; अब तो हम अपने जीवन भर उस क्रूर कठिन को कोस चुके; उस पार नियति का मानव से व्यवहार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

5

संसृति के जीवन में, सुभगे ऐसी भी घड़ियाँ आएँगी, जब दिनकर की तमहर किरणे तम के अन्दर छिप जाएँगी, जब निज प्रियतम का शव, रजनी तम की चादर से ढक देगी, तब रवि-शशि-पोषित यह पृथ्वी कितने दिन खैर मनाएगी! जब इस लंबे-चौड़े जग का अस्तित्व न रहने पाएगा, तब हम दोनो का नन्हा-सा संसार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

6

ऐसा चिर पतझड़ आएगा कोयल न कुहुक फिर पाएगी, बुलबुल न अंधेरे में गागा जीवन की ज्योति जगाएगी, अगणित मृदु-नव पल्लव के स्वर ‘मरमर’ न सुने फिर जाएँगे, अलि-अवली कलि-दल पर गुंजन करने के हेतु न आएगी, जब इतनी रसमय ध्वनियों का अवसान, प्रिये, हो जाएगा, तब शुष्क हमारे कंठों का उद्गार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

7

सुन काल प्रबल का गुरु-गर्जन निर्झरिणी भूलेगी नर्तन, निर्झर भूलेगा निज ‘टलमल’, सरिता अपना ‘कलकल’ गायन, वह गायक-नायक सिन्धु कहीं, चुप हो छिप जाना चाहेगा, मुँह खोल खड़े रह जाएँगे गंधर्व, अप्सरा, किन्नरगण; संगीत सजीव हुआ जिनमें, जब मौन वही हो जाएँगे, तब, प्राण, तुम्हारी तंत्री का जड़ तार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

8

उतरे इन आखों के आगे जो हार चमेली ने पहने, वह छीन रहा, देखो, माली, सुकुमार लताओं के गहने, दो दिन में खींची जाएगी ऊषा की साड़ी सिन्दूरी, पट इन्द्रधनुष का सतरंगा पाएगा कितने दिन रहने; जब मूर्तिमती सत्ताओं की शोभा-सुषमा लुट जाएगी, तब कवि के कल्पित स्वप्नों का श्रृंगार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

9

दृग देख जहाँ तक पाते हैं, तम का सागर लहराता है, फिर भी उस पार खड़ा कोई हम सब को खींच बुलाता है; मैं आज चला तुम आओगी कल, परसों सब संगीसाथी, दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है, जाता है; मेरा तो होता मन डगडग, तट पर ही के हलकोरों से! जब मैं एकाकी पहुँचूँगा मँझधार, न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

- Harivansh Rai Bachchan

Tuesday, January 26, 2010

मैंने मन में ठानी है

मैंने शांति नहीं जानी है !
त्रुटि कुछ है मेरे अन्दर भी ,
त्रुटि कुछ है मेरे बाहर भी ,
दोनों को त्रुटि हीन बनाने की मैंने मन में ठानी है !
मैंने शांति नहीं मानी है !

आयु बिता दी यत्नों में लग ,
उसी जगह मैं , उसी जगह जग ,
कभी - कभी सोचा करता अब , क्या मैंने की नादानी है !
मैंने शांति नहीं जानी है !

पर निराश होऊं किस कारण ,
क्या पर्याप्त नहीं आशवासन ?
दुनिया से मानी , अपने से मैंने हार नहीं मानी है !
मैंने शांति नहीं जानी है

- Harivansh Rai Bachchan

Sunday, January 25, 2009

Chhip chhip ashroo bahaney walon

Chhip chhip ashru bahaney walon
Moti vyarth lutaney walo
Kuchh sapno ke mar jaaney se
Jeevan nahi mara karta hai

Sapna kya hai, nayan sej par
Soya hua aankh ka paani
Aur tootna hai uska jyon
Jaagey kachchi neend jawani

Geeli umar bananey walo
Doobey bina nahaney walo
Kuchh paani ke bah jaaney se
Saawan nahi mara karta hai

Maala bikhar gai to kya
Khud hi hal ho gai samasya
Anshoo gar neelaam huey toh
Samjho poori hui tapasya

Roothey diwas mananey walo
Fati kameez silaaney walo
Kuchh deepon ke bujh jaaney se
Aangan nahi mara karta hai

Khota kuchh bhi nahi yahan par
Kewal jild badalti pothi
Jaise raat utaar chaandni
Pehne subah dhoop ki dhoti

Vastr badalkar aaney walo
Chaal badalkar jaaney walo
Chand khilono ke khoney se
Bachpan nahi mara karta hai

Laakhon baar gagriyan phooti
Shikan na aayi par panghat par
Laakhon baar kashtiyan doobi
Chahal pahal woi hai tat par

Tam ki umr badhaaney walo
Lau ki aayu ghataaney walo
Laakh kare patjhar koshish par
Upvan nahi mara karta hai

Loot liya maali ne upvan
Lutee na lekin gandh phool ki
Toofaano tak ne chheda par
Khidki band na hui dhool ki

Nafrat galey lagaaney walo
Sab par dhool udaaney walo
Kuchh mukhdon ki naaraazi se
Darpan nahi mara karta hai

- Neeraj

Notes: I like this recital on youtube: http://www.youtube.com/watch?v=ho6OydgoahM

Karwaan Guzar Gaya..

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े खड़े, बहार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी
पाँव जब तलक उठें कि जिंदगी फिसल गयी
पात पात झर गये कि शाख़ शाख़ जल गयी
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गयी
गीत अश्क बन गये, छंद हो दफन गये
साथ के सभी दिये धुआँ पहन पहन गये
और हम झुके, झुके, मोड़ पर रुके रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे

क्या शबाब था कि फूल, फूल प्यार कर उठा
क्या श्रंगार था कि देख, आइना सिहर उठा
इस तरफ जमीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नजर उठा
एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली
लुट गयी कली, कली कि घुट गयी गली, गली

और हम लुटे, लुटे, वक्त से पिटे, पिटे
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की संवार दूँ
होठ थे मिले कि हर बहार को पुकार दूँ
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ
और साँस ताकि स्वर्ग भूमि पर उतार दूँ

हो सका न कुछ मगर, शाम बन गयी सहर
वह उठी लहर कि ढह गए किले बिखर बिखर
और हम डरे डरे, नीर नयन में भरे
ओढ कर कफ़न पड़े, मजार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे

माँग भर चली कि एक, इक नई नई किरण
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमुक उठे चरण चरण
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन नयन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन
पर तभी जहर भरी, गाज एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार तार हुई चूनरी
और हम अजान से, दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे

- Neeraj
Publish Post

Wednesday, November 05, 2008

Zindagi

Thandee ratoo ke thandey ehsason kee chup chup raat ke baad,
Subah kee gunguni dhoop, pankhdiyo par giri chamaktee os hai zindagi,
Bikhartey bichadtey rishto kee sameekaran see hai zindagee,
Yoon chamaktey maasom bacchey kee muskan see hai zindagee,
Kuch bhee kahee bhee nahee, phir bhee vasudhaiv kutumbkam hai zindagi.

Tuesday, November 04, 2008

Jo beet gayi so baat gayi

Past by Ma Vera (see image information below)

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

- Harivansh Rai Bacchan

Image Information: This image is from http://www.flickr.com/photos/ma_vera/2913934919/

Koshish karney walon kee...

Never give up by jferrer
( See image information below)

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, One doesn't cross the stream by being scared of the current
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never loose

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, When a tiny ant carries little grains
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।She tries climbing on the walls, and fall hundred times
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,Determination of mind gives courage to the body
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।And then, walking and stumbling, stumbling and walking doesn't hurt
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,Ultimately her hardwork is not wasted
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never lose

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, A swimmer takes a dip in the ocean
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।Again and again he comes back empty handed
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में, It is not easy to find pearls in deep water
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।But in this struggle his determination doubles
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती, His hand is not empty every time
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never lose

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, Failure is a challenge, accept it
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। Think what was lacking and improvise
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,Until you are successful, give up comfort and pleasures
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।Don't run from the playground of struggle
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,One is not praised without doing anything
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never lose

- Harivansh Rai Bacchan

Resources: Listen to a beautiful recital of this inspiring poem at http://www.youtube.com/watch?v=2eOMxLMvCpY

Image Information: This image is from http://www.flickr.com/photos/jferrer/374456844/

बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं।
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर,हटो नहीं
तुम निडर,डटो नहीं
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी
(1916 - -1998)

Saturday, October 18, 2008

ऊँचाई

ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो, कफन की तरह सफेद और,
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती, खिल-खिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर,
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनन्दन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किन्तु कोई गौरैया,
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
ना कोई थका-मांदा बटोही,
उसकी छांव में पलभर पलक ही झपका सकता है।


सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफि नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बंटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।

जरूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूंट सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इन्सानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई कांटा न चुभे,
कोई कलि न खिले।

न वसंत हो, न पतझड़,
हों सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलापन का सन्नाटा।

मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
गैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।

- Atal Bihari Bajpai

Source:http://manaskriti.com/kaavyaalaya/oonchai.stm

Saturday, September 06, 2008

Tit Bits..

keval badal nahee aankh ko,
thodee see dopahar bhee le aana
jeetey jeetey maretey hain sab
tum martey martey jee jaana

jab jab thakan sindhu ho jaye
aur chetna lagey doobney
baith hriday ke madiralay mein
tab tab dard sura pee lena

-Ramasnehi lal sharma 'yayavar'

Dono or prem palta hai,
priya,patang to jalta hee hai
deepak bhee jalta hai

-Anonymous

Source:Kaavyalaya

Monday, August 18, 2008

Tit bits..

Ek zamana by Neha

Tumharey Gungunaney ka koi matlab raha hoga,
Tumharey Muskuraney ka koi matlab raha hoga,
Preet ke sanket yoon hee vyartha to hotey nahee hain,
Tumharey kasmasaney ka koi matlab raha hoga.

- Anoop Bhargava

Chashmney purnam bahee, bahee, na bahee,
Zindagee hai rahee, rahee, na rahee;
Tum to keh do jo tumhey kehna tha,
Mera kya hai, Kahee, kahee, na kahee.

- Vinod Tiwari

Tum humarey kisi tarah na huye,
Varna duniya mein kya nahee hota;
Tum merey paas hotey ho goya,
To koi doosra nahee hota

- Momin