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Tuesday, January 06, 2015

Koi paar nadi ke gata


bhang nishaa ki neeravta kar
(Breaking the silence of the night)
is dehaati gaane ka swar
(this rural/folk song's notes)
kakdi ke kheto se uthkar, aata jamuna par leharaata
(rising from cucumber's field, wish it came in waves on the river Jamuna)
koi paar nadi ke gaata
(wish someone sang across the river)

honge bhai bandhu nikat hi
(there could be relatives/friends nearby)
kabhi sochte honge ye bhi
(who may also be thinking sometimes)
is tat par bhi koi, uski tano se sukh pata
(somebody on this river bank may also seek solace / happiness from his song/raaga )
koi paar nadi ke gaata
(wish someone sang across the river)

aaj na jaane kyun hota mann
(Don't know why today this mind )
sun kar ye ekaaki gaayan
(after listening to the lonesome song)
sadaa ise main sunta rehta, sadaa ise ye gaata jaata
(always wants to listen to it, always wants to sing it)
koi paar nadi ke gaata
(wish someone sang across the river)

- Harivansh Rai Bachchan

Saturday, February 13, 2010

इस पार, उस पार

Frontier by Neha

1

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो, बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का, तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

2

जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बूंदें पाती है, जीवन की झिलमिलसी झाँकी नयनों के आगे आती है, स्वरतालमयी वीणा बजती, मिलती है बस झंकार मुझे, मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है; ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जाएँगे; तब मानव की चेतनता का आधार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

3

प्याला है पर पी पाएँगे, है ज्ञात नहीं इतना हमको, इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थबना कितना हमको, कहने वाले, पर कहते है, हम कर्मों में स्वाधीन सदा, करने वालों की परवशता है ज्ञात किसे, जितनी हमको? कह तो सकते हैं, कहकर ही कुछ दिल हलका कर लेते हैं, उस पार अभागे मानव का अधिकार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

4

कुछ भी न किया था जब उसका, उसने पथ में काँटे बोये, वे भार दिए धर कंधों पर, जो रो-रोकर हमने ढोए; महलों के सपनों के भीतर जर्जर खँडहर का सत्य भरा, उर में ऐसी हलचल भर दी, दो रात न हम सुख से सोए; अब तो हम अपने जीवन भर उस क्रूर कठिन को कोस चुके; उस पार नियति का मानव से व्यवहार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

5

संसृति के जीवन में, सुभगे ऐसी भी घड़ियाँ आएँगी, जब दिनकर की तमहर किरणे तम के अन्दर छिप जाएँगी, जब निज प्रियतम का शव, रजनी तम की चादर से ढक देगी, तब रवि-शशि-पोषित यह पृथ्वी कितने दिन खैर मनाएगी! जब इस लंबे-चौड़े जग का अस्तित्व न रहने पाएगा, तब हम दोनो का नन्हा-सा संसार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

6

ऐसा चिर पतझड़ आएगा कोयल न कुहुक फिर पाएगी, बुलबुल न अंधेरे में गागा जीवन की ज्योति जगाएगी, अगणित मृदु-नव पल्लव के स्वर ‘मरमर’ न सुने फिर जाएँगे, अलि-अवली कलि-दल पर गुंजन करने के हेतु न आएगी, जब इतनी रसमय ध्वनियों का अवसान, प्रिये, हो जाएगा, तब शुष्क हमारे कंठों का उद्गार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

7

सुन काल प्रबल का गुरु-गर्जन निर्झरिणी भूलेगी नर्तन, निर्झर भूलेगा निज ‘टलमल’, सरिता अपना ‘कलकल’ गायन, वह गायक-नायक सिन्धु कहीं, चुप हो छिप जाना चाहेगा, मुँह खोल खड़े रह जाएँगे गंधर्व, अप्सरा, किन्नरगण; संगीत सजीव हुआ जिनमें, जब मौन वही हो जाएँगे, तब, प्राण, तुम्हारी तंत्री का जड़ तार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

8

उतरे इन आखों के आगे जो हार चमेली ने पहने, वह छीन रहा, देखो, माली, सुकुमार लताओं के गहने, दो दिन में खींची जाएगी ऊषा की साड़ी सिन्दूरी, पट इन्द्रधनुष का सतरंगा पाएगा कितने दिन रहने; जब मूर्तिमती सत्ताओं की शोभा-सुषमा लुट जाएगी, तब कवि के कल्पित स्वप्नों का श्रृंगार न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

9

दृग देख जहाँ तक पाते हैं, तम का सागर लहराता है, फिर भी उस पार खड़ा कोई हम सब को खींच बुलाता है; मैं आज चला तुम आओगी कल, परसों सब संगीसाथी, दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है, जाता है; मेरा तो होता मन डगडग, तट पर ही के हलकोरों से! जब मैं एकाकी पहुँचूँगा मँझधार, न जाने क्या होगा! इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

- Harivansh Rai Bachchan

Tuesday, January 26, 2010

मैंने मन में ठानी है

मैंने शांति नहीं जानी है !
त्रुटि कुछ है मेरे अन्दर भी ,
त्रुटि कुछ है मेरे बाहर भी ,
दोनों को त्रुटि हीन बनाने की मैंने मन में ठानी है !
मैंने शांति नहीं मानी है !

आयु बिता दी यत्नों में लग ,
उसी जगह मैं , उसी जगह जग ,
कभी - कभी सोचा करता अब , क्या मैंने की नादानी है !
मैंने शांति नहीं जानी है !

पर निराश होऊं किस कारण ,
क्या पर्याप्त नहीं आशवासन ?
दुनिया से मानी , अपने से मैंने हार नहीं मानी है !
मैंने शांति नहीं जानी है

- Harivansh Rai Bachchan

Monday, February 23, 2009

Jeevan kee aapadhapee mein

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

- Harivansh Rai Bacchan

Tuesday, November 04, 2008

Jo beet gayi so baat gayi

Past by Ma Vera (see image information below)

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

- Harivansh Rai Bacchan

Image Information: This image is from http://www.flickr.com/photos/ma_vera/2913934919/

Koshish karney walon kee...

Never give up by jferrer
( See image information below)

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, One doesn't cross the stream by being scared of the current
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never loose

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, When a tiny ant carries little grains
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।She tries climbing on the walls, and fall hundred times
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,Determination of mind gives courage to the body
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।And then, walking and stumbling, stumbling and walking doesn't hurt
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,Ultimately her hardwork is not wasted
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never lose

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है, A swimmer takes a dip in the ocean
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।Again and again he comes back empty handed
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में, It is not easy to find pearls in deep water
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।But in this struggle his determination doubles
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती, His hand is not empty every time
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never lose

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, Failure is a challenge, accept it
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। Think what was lacking and improvise
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,Until you are successful, give up comfort and pleasures
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।Don't run from the playground of struggle
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,One is not praised without doing anything
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।Those who try never lose

- Harivansh Rai Bacchan

Resources: Listen to a beautiful recital of this inspiring poem at http://www.youtube.com/watch?v=2eOMxLMvCpY

Image Information: This image is from http://www.flickr.com/photos/jferrer/374456844/

Saturday, August 16, 2008

Yatra aur Yatri

The Bedouin by Neha

यात्रा और यात्री

साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

चल रहा है तारकों का
दल गगन में गीत गाता,
चल रहा आकाश भी है
शून्य में भ्रमता-भ्रमाता,

पाँव के नीचे पड़ी
अचला नहीं, यह चंचला है,

एक कण भी, एक क्षण भी
एक थल पर टिक न पाता,

शक्तियाँ गति की तुझे
सब ओर से घेरे हुए है;
स्थान से अपने तुझे
टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!

साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

थे जहाँ पर गर्त पैरों
को ज़माना ही पड़ा था,
पत्थरों से पाँव के
छाले छिलाना ही पड़ा था,

घास मखमल-सी जहाँ थी
मन गया था लोट सहसा,

थी घनी छाया जहाँ पर
तन जुड़ाना ही पड़ा था,

पग परीक्षा, पग प्रलोभन
ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू
इस तरफ डटना उधर
ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

शूल कुछ ऐसे, पगो में
चेतना की स्फूर्ति भरते,
तेज़ चलने को विवश
करते, हमेशा जबकि गड़ते,

शुक्रिया उनका कि वे
पथ को रहे प्रेरक बनाए,

किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने
के लिए मजबूर करते,

और जो उत्साह का
देते कलेजा चीर, ऐसे
कंटकों का दल तुझे
दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

सूर्य ने हँसना भुलाया,
चंद्रमा ने मुस्कुराना,
और भूली यामिनी भी
तारिकाओं को जगाना,

एक झोंके ने बुझाया
हाथ का भी दीप लेकिन

मत बना इसको पथिक तू
बैठ जाने का बहाना,

एक कोने में हृदय के
आग तेरे जग रही है,
देखने को मग तुझे
जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

वह कठिन पथ और कब
उसकी मुसीबत भूलती है,
साँस उसकी याद करके
भी अभी तक फूलती है;

यह मनुज की वीरता है
या कि उसकी बेहयाई,

साथ ही आशा सुखों का
स्वप्न लेकर झूलती है

सत्य सुधियाँ, झूठ शायद
स्वप्न, पर चलना अगर है,
झूठ से सच को तुझे
छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!


- Harivansh Rai Bacchan

Source:http://manaskriti.com/kaavyaalaya/yatra_aur_yatri.stm

Thursday, August 09, 2007

Agneepath ...

Red Vineyard by Gogh ( see image information below)


Vriksh ho bhale khade, ( even if the tree stands tall)
Ho ghane, ho bade, ( even if it is dense and big)
Ek patra chaa bhi, ( shade of a single leaf)
Mang maat, mang maat, mang maat ( don't ask, don't ask, don't ask)
Agnipath, Agnipath, Agnipath ({on this} path of fire, path of fire, path of fire)

Tu na thakega kabhi, ( you will not get tired ever)
Tu na thamega kabhi, ( you will not stop ever)
Tu na mudega kabhi, ( you will not turn back ever)
Kar shapath, kar shapath, kar shapath ( take this oath, take this oath, take this oath)
Agnipath, Agnipath, Agnipath ( {on this} path of fire, path of fire, path of fire)

Yeh maahan drishya hai, ( this is a great vision)
Chal raha manushya hai, ( man walks on)
Ashru, shwet, rakth se, ( with tears, sweat and blood)
Lathpat, lathpat, lathpat ( he is soaked, he is soaked, he is soaked)
Agnipath, Agnipath, Agnipath ( {on this} path of fire, path of fire, path of fire)
.
- Shri Harivansh Rai Bachchan
**
About the poem: Agneepath ( meaning path of fire) is one of the most inspirational poem written by Shri.Harivansh Rai Bachchan. The poem is about struggle we as humans face, it is about persistence and never giving up in face of adversity. The poem was used as title of Amitabh Bachchan's 1990 film for which he won a national award. Amitabh Bachchan's character Vijay Dinanath Chauhan narrates the poem through out the movie.

Image Information : The image is painting "Red Vineyard " by Vincent Van Gogh. It was the only piece sold by the Van Gogh while he was alive. Source : http://en.wikipedia.org/wiki/The_Red_Vineyard

Recital : Here is a nice recital

Wednesday, August 08, 2007

Madhushaala..


Madiralay jaane ko ghar se chaltaa hai peenewaala
kis path se jaaoon asmanjas mein hai wo bhola bhaala
alag alag path batalatey sab par main ye batlata hoon
raah pakad tu ek chalaa-chal paa jaayega madhushaala
*
Sun kal-kal chal-chal madhu-ghat se girti pyalon mein haala
sun run Jhun-Jhun chal witran karti madhusa ki baala
bas aa pahunche door nahin kuch chaar kadam aur chalna hai
chahak rahe sun peene waale mehak rahi le madhushaala
*
Naal sura kee dhaar lapat see keh na dena ise jwaala
madira hai math isko keh dena urr ka chaala
dard nasha hai is madira ka wigat smritiyan saaqi hain
peeda mein anand jise ho aaye meri madhushaala
*
Sumukhi tumhara sundar mukh hi mujh ko kanchan kaa pyaalaa
chhalak rahi hai jisme manik roop madhur maadak haalaa
maiN hi saaqi banta main hi peene waala banta hoon
jahan kahin mil baithe hum tum wahin gaee ho madhushaala
*
Girti jatee hai pratidin pranyani prano kee haala
magn hua jaata din-pratidin subhge mera tan pyaala
rooth raha hai mujhse roop si din-din yauwan ka saaqi
sookh rahi hai din-din sundari meri jeewan madhushaala
*
Chote se jeewan mein kitna pyaar karoon peeloon haala
aane ke hee saath jagat mein kehlaaya jaane-waala
swaagat ke hee saath wida ki hothi dekhi tayyaari
band lagi hone khulte hee meri jeewan madhushaala
*

About the Poet: Madhushala is one of Shri. Harivansh Rai Bachchan's most famous compositions. When it was first published in 1935, Dr. Bachchan became famous overnight. The poem has total of 135 verses. Each verse is called a rubaai . All the rubaai's end in the word Madhushala ( which means wine house).Madhushala and haala (wine) serve as the basic metaphors in the poem and are used to symbolize life and all it's constituents - love, beauty, pain ,joys and hope.
*****
Mitti ka tann, mastee ka mann,
kshan bhar jeevan mera parichay
- Harivansh Rai Bachchan
*****
References:
1. For English translation of Mashushala see http://www.cs.rice.edu/~ssiyer/minstrels/poems/72.html
2.For Complete Hindi text of Madhushala see : http://manaskriti.com/kaavyaalaya/mdhshla.stm
3. For more Madhushala couplets written in English see: http://members.tripod.com/~ghazal/madhusala.html
4. For Biography of Harivansh Rai Bachchan and his other works see : http://en.wikipedia.org/wiki/Harivansh_Rai_Bachchan