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Tuesday, April 13, 2010

"मैं तुम्हारी, तुम हमारे !"

"That season" by Neha


नयन में निज नयन भर कर,

अधर पर सुमधुर अधर धर,

साध कर स्वर, साध कर उर,

एक दिन तुमने कहा था प्रेम-गंगा के किनारे !

"मैं तुम्हारी, तुम हमारे !"



था थकित उर-प्यार हारा

मौन था संसार सारा,

सुन रहा था सरित-जल चल, मुस्कराते चाँद-तारे !

"मैं तुम्हारी, तुम हमारे !"



अब कहीं तुम मैं कहीं हूँ,

अर्थ इसका मैं नहीं हूँ,

शेष हैं वे शब्द, क्षत उर-स्वप्न, दो नयानाश्रु खारे !

"मैं तुम्हारी, तुम हमारे !"


- गोपाल दास नीरज


I love this poem by Neeraj. It reminds me of "Tonight I Can Write the Saddest Lines" by Pablo Neruda which is also one of my favorite poems