Parinda by Neha
खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की,
खिडकी खुली है फिर कोई उनके मकान की.
हारे हुए परिन्दे ज़रा उड़ के देख तो,
आ जायेगी जमीन पे छत आसमान की.
बुझ जाये सरेशाम ही जैसे कोई चिराग,
कुछ यूँ है शुरुआत मेरी दास्तान की.
ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी,
हालत यही है आजकल हिन्दुस्तान की.
औरों के घर की धूप उसे क्यूं पसंद हो,
बेची हो जिसने रोशनी अपने मकान की .
जुल्फों के पेंचो-ख़म में उसे मत तलाशिये,
ये शायरी जुबां है किसी बेजुबान की.
'नीरज' से बढ़कर और धनी है कौन,
उसके हृदय में पीर है सारे जहान की.
- गोपालदास "नीरज"
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