लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े खड़े, बहार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गयी
पाँव जब तलक उठें कि जिंदगी फिसल गयी
पात पात झर गये कि शाख़ शाख़ जल गयी
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गयी
गीत अश्क बन गये, छंद हो दफन गये
साथ के सभी दिये धुआँ पहन पहन गये
और हम झुके, झुके, मोड़ पर रुके रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
क्या शबाब था कि फूल, फूल प्यार कर उठा
क्या श्रंगार था कि देख, आइना सिहर उठा
इस तरफ जमीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नजर उठा
एक दिन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली
लुट गयी कली, कली कि घुट गयी गली, गली
और हम लुटे, लुटे, वक्त से पिटे, पिटे
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की संवार दूँ
होठ थे मिले कि हर बहार को पुकार दूँ
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ
और साँस ताकि स्वर्ग भूमि पर उतार दूँ
हो सका न कुछ मगर, शाम बन गयी सहर
वह उठी लहर कि ढह गए किले बिखर बिखर
और हम डरे डरे, नीर नयन में भरे
ओढ कर कफ़न पड़े, मजार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
माँग भर चली कि एक, इक नई नई किरण
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमुक उठे चरण चरण
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन नयन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन
पर तभी जहर भरी, गाज एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार तार हुई चूनरी
और हम अजान से, दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
- Neeraj
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